Guru Govind Singh Jayanti 2024: गुरु गोविन्द सिंह जी का धर्म

गुरु गोविन्द सिंह: गुरु गोविन्द सिंह सिख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु माने जाते थे। सिख धर्म के नौवें गुरु गुरुतेग बहादुर जी माने जाते थे। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म पटना के बिहार में हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान कवि, योद्धा और भक्त थे, उन्होंने ही बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसलिए आज के दिन उनके सम्मान में गुरु गोविन्द सिंह जयंती मनाई जाती है। गुरु गोविन्द सिंह ने अपना पूरा जीवन लोगो की सेवा और सच्चाई के राह में चलाते हुए गुजार दिया।

गुरु गोविन्द सिंह जयंती 

खालसा धर्म पंथ की स्थापना:

गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना तब की जब मुगल सम्राट औरंगजेब का शासन चरम सीमा पर था। निर्दोषों की हत्या की जा रही थी। गुरु गोविन्द के पिता तेग बहादुर का सिर काट दिया गया था। गुरु गोविन्द सिंह जी ने निर्दोष लोगो को को उनके उत्पीड़न से बचाने के लिए ही खालसा पंथ की स्थापना 1699 में की। खालसा का अर्थ है कि "मुक्त होना" सिख धर्म के इतिहास में ये एक महत्त्वपूर्ण घटना है।

गुरु गोविन्द सिंह जी ने ही सिख गुरुओं के उत्तराधिकारियों की इस परंपरा को खत्म किया। गुरु ग्रंथ साहिब पवित्र ग्रंथ की रचना की।

गुरु गोविन्द सिंह जी थे जिन्होंने सिखो के द्वारा पालन किए जाने वाले पांच ककारो का परिचय दिया। कंघा, कृपाण, कड़ा, केश, कच्छा आदि ये पाच चीजे हमेशा अपने पास रखे।

सिख धर्म को भाईचारे का संदेश:

गुरु गोविंद सिंह जी ने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया. उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए. उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी. उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी. गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु 42 वर्ष की उम्र में 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में हुई।

गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रमुख रचनाएं:

गुरु गोविन्द सिंह के द्वारा कुछ रचनाए लिखी गई है।

चंडी दी वार, जाप साहिब, अकाल उस्तत, बचित्र नाटक, जफरनामा और खालसा महिमा आदि। इन सभी रचनाओं का अपना महत्व है।


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-varsha

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